Thursday, September 6, 2018

नोचिकित्सकों की मानें तो ऐसे लोगों से डरने की

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, और झारखंड समेत देश के 16 राज्यों के लगभग  , से अधिक मदरसा शिक्षकों को पिछले ढाई सालों से केंद्र सरकार की तरफ से वेतन नहीं मिला है जिसके कारण बहुत से शिक्षकों की आर्थिक स्थिति ख़राब होती जा रही है.
अमरोहा से इस विरोध प्रदर्शन में पहुंचे यूसुफ अली सैफी ने कहा, "हमारे घर की स्थिति बहुत दयनीय होती जा रही है. हम गुजर बसर को लेकर परेशान हैं. कई शिक्षक दुकानों पर और खेतों में मजदूरी करने के लिए विवश हैं."
वहीं प्रतापगढ़ से पहुंचे अंसार अली कहते हैं, "हम पोस्ट ग्रेजुएट हैं लेकिन हमें वेतन दिहाड़ी मजदूरों से भी कम मिलता है यहां तक कि राज्य सरकार से मिलने वाले पैसे भी समय से नहीं मिलते. केंद्र ने पैसे रोक रखे हैं तो भला तीन हज़ार रुपये महीने में हम अपना घर कैसे चलाएं. क्या इसी दिन के लिए पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई की थी."
भारत में मदरसों की संख्या 25,000 से अधिक बताई जाती है, जिनमें अकेले उत्तर प्रदेश में ही राज्य मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त 19,213 मदरसे हैं.
एजाज अहमद कहते हैं, "राज्य के मदरसों में शिक्षकों की संख्या लगभग 25 हज़ार है, जबकि पूरे देश में इनकी तादाद 50 हज़ार है. सरकारी पोर्टल पर भी इन मदरसों के डेटा ऑनलाइन किए गए हैं. इनके आधुनिकीकरण के लिए करीब 1,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है. यहां केवल मुसलमान शिक्षक ही नहीं हैं. इनमें करीब 20 फ़ीसदी शिक्षक हिंदू हैं."
सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 को अपराध की श्रेणी से हटाने पर विचार चल रहा है. इस बीच ऐसी बहुत सी गलत बातें हैं जो समलैंगिक समुदाय के बारे में लोगों के मन में समाई हुई हैं. ऐसे ही कुछ मिथक और सवालों के जवाब देखिए इस वीडियो में.
बीबीसी ने कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों से जानना चाहा कि वे समलैंगिक समुदाय के बारे में कितना जानते हैं और उनकी कैसी छवि अपने मन में बसाए हुए हैं.
वीडियोः नवीन नेगी और बुशरा शेख़
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक,
देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को आईपीसी की धारा-377 की क़ानूनी वैधता पर फ़ैसला सुना दिया है. अब आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बनाए गए संबंध को आपराधिक कृत्य नहीं माना जाएगा.
चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा ने आज फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. समलैंगिको के भी वही मूल अधिकार हैं जो किसी सामान्य नागरिक के हैं. सबको सम्मान से जीने का अधिकार है.
चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ इस मामले पर फ़ैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया था.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इसके विरोध में कई याचिकाएं मिलीं. आईआईटी के 20 छात्रों ने नाज़ फाउंडेशन के साथ मिलकर याचिका डाली थी. इसके अलावा अलग-अलग लोगों ने भी समलैंगिक संबंधों को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, जिसमें 'द ललित होटल्स' के केशव सूरी भी शामिल हैं. अब तक सुप्रीम कोर्ट को धारा-377 के ख़िलाफ़ 30 से ज़्यादा याचिकाएँ मिली हैं.
याचिका दायर करने वालों में सबसे पुराना नाम नाज़ फाउंडेशन का है, जिसने 2001 में भी धारा-377 को आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने की मांग की थी.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया है. आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास दिया जाएगा. इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है. यह अपराध ग़ैर ज़मानती है.

भारत में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और इसे आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने के लिए ही ये सुनवाई हो रही है.
हालांकि इस मामले में कई पेंच हैं. निजता के अधिकार पर एक सुनवाई करते हुए साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "सेक्सुअल ओरिएंटेशन/ यौन व्यवहार सीधे तौर पर निजता के अधिकार से जुड़ा है. यौन व्यवहार के आधार पर भेदभाव करना व्यक्ति विशेष की गरिमा को ठेस पहुंचाना है."ल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे प्राकृतिक व्यवहार के विरूद्ध बताया और इसे अपराध ठहराया.
इस मामले पर  के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट और वकील आदित्य बंदोपाध्याय ने बीबीसी को बताया, "अगर आप अपने पर्सनल स्पेस में होमोसेक्शुएलिटी फॉलो करते हैं तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता. लेकिन जब आप इसको अभिव्यक्त करते हैं तो यह आपराधिक हो जाता है."
वहीं इस समुदाय के लिए काम करने वाले नक्षत्र भागवे कहते हैं कि लोगों को लगता है कि उनकी इस मांग के पीछे सेक्स है, लेकिन ऐसा नहीं हैं. "हम सेक्स के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हमारी ये लड़ाई हमारी पहचान के लिए है."

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